Monday 23 December 2013

__मैँ__

कभी ख़ाक.... तो कभी फूल
कभी शाख.... तो कभी शूल

क्या नज़र है तेरी
ऐ ख़ुदा
क्या क़रम है तेरा
रास्ते बनाता है
उस पे काँटे भी बिछाता है
फिर राह दिखाता है
मुश्किलेँ भी बढाता है
और गिराता है .....
संभालता है .....
मंज़िल तक भी पहुँचाता है
सवाल भी बनाता है
और ख़ुद ही
जवाब बनकर भी
आ जाता है
बस एक गुज़ारिश है

ऐ ख़ुदा ...!!!

चलना मेरे साथ
रुकना मेरे साथ
मैं गिरुँ तो संभलना
मुझमेँ.....मेरे साथ
मुझको...... मुझसे दूर न करना
मुझको...... मुझतक पहुँचाना

जब मैँ
ख़ुद तक पहुँच जाऊँ
तो समझ लेना कि
तुम तक पहुँच गई
और जब मैँ
तुम तक पहुँच जाऊँ
तो समझ लेना कि
ख़ुद तक पहुँच गई.......

॰॰॰॰ निशा चौधरी ।

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