समर्पिता हूँ अर्पिता
भंगिमा से उपज कर
जो भाव तक न पहुँच सकी
कैसा है वो यत्न
व्यर्थ वो प्रयत्न
उछाह उस व्यथा का
चरम पर दिखता हो जैसे
अति ही है वो वेदना
मैँ करुणा
स्वाभाविक संवेदना से जुड़ कर
बंकिम उस मार्ग को
निहारती हूँ जैसे
उस अस्वाभाविक
व्यवहार से आहत
वो भयावह अवसान
उस भाव की
भव- भूति हो जैसे... ।
¤¤¤ निशा चौधरी ।
भंगिमा से उपज कर
जो भाव तक न पहुँच सकी
कैसा है वो यत्न
व्यर्थ वो प्रयत्न
उछाह उस व्यथा का
चरम पर दिखता हो जैसे
अति ही है वो वेदना
मैँ करुणा
स्वाभाविक संवेदना से जुड़ कर
बंकिम उस मार्ग को
निहारती हूँ जैसे
उस अस्वाभाविक
व्यवहार से आहत
वो भयावह अवसान
उस भाव की
भव- भूति हो जैसे... ।
¤¤¤ निशा चौधरी ।
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